हिंदुस्तान कैसे आज़ाद हुआ: एक संपूर्ण इतिहास
हिंदुस्तान कैसे आज़ाद हुआ: एक संपूर्ण इतिहास ? How India became independent: A complete history Simple words
प्रस्तावना
15 अगस्त 1947 का दिन भारतीय इतिहास में स्वर्णिम अक्षरों में लिखा गया है। यह वह दिन था जब भारत ने 200 वर्षों के ब्रिटिश शासन से स्वतंत्रता प्राप्त की। लेकिन इस आज़ादी की कहानी बहुत लंबी और कठिन रही है। भारत की स्वतंत्रता केवल एक दिन का परिणाम नहीं थी, बल्कि यह दशकों के संघर्ष, बलिदान और नेतृत्व का परिणाम थी। यह लेख उस यात्रा को चित्रित करता है, जिसने हिंदुस्तान को आज़ादी दिलाई।
ब्रिटिश शासन की शुरुआत
ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने 1600 ईस्वी में भारत में अपना व्यापार स्थापित किया। धीरे-धीरे व्यापार के साथ-साथ उन्होंने भारत में अपने राजनीतिक प्रभाव को बढ़ाना शुरू कर दिया। 1757 में प्लासी की लड़ाई के बाद, कंपनी ने बंगाल के नवाब सिराजुद्दौला को हराया और बंगाल पर नियंत्रण कर लिया। इस लड़ाई ने भारत में ब्रिटिश साम्राज्य की नींव रखी।
अगले कुछ दशकों में, ब्रिटिशों ने भारत के विभिन्न हिस्सों पर कब्जा कर लिया। उन्होंने भारत को विभिन्न रियासतों में विभाजित किया और रजवाड़ों के साथ संधियाँ कीं। इस प्रकार, ब्रिटिश साम्राज्य ने धीरे-धीरे पूरे भारत पर अपना नियंत्रण स्थापित कर लिया।
1857 का स्वतंत्रता संग्राम
1857 का स्वतंत्रता संग्राम, जिसे प्रथम स्वतंत्रता संग्राम भी कहा जाता है, भारत की स्वतंत्रता के लिए पहला बड़ा प्रयास था। इस संग्राम की शुरुआत मेरठ से हुई, जहाँ भारतीय सिपाहियों ने ब्रिटिश अधिकारियों के खिलाफ बगावत की। यह विद्रोह जल्द ही पूरे उत्तर भारत में फैल गया और दिल्ली, कानपुर, झांसी, लखनऊ जैसे महत्वपूर्ण केंद्र इसके मुख्य केंद्र बने।
इस संग्राम में कई वीर योद्धाओं ने अपनी जान की बाज़ी लगाई, जिनमें रानी लक्ष्मीबाई, तात्या टोपे, नाना साहेब, और बहादुर शाह ज़फर प्रमुख थे। हालाँकि, इस विद्रोह को ब्रिटिशों ने बेरहमी से दबा दिया, लेकिन इसने भारतीयों के दिलों में स्वतंत्रता की भावना को और प्रबल किया।
स्वतंत्रता संग्राम के विभिन्न चरण
स्वदेशी आंदोलन (1905-1908)
स्वदेशी आंदोलन 1905 में बंगाल के विभाजन के विरोध में शुरू हुआ था। इस आंदोलन के दौरान भारतीयों ने ब्रिटिश वस्त्रों और उत्पादों का बहिष्कार किया और स्वदेशी (स्वदेश में बने) वस्त्रों का प्रयोग शुरू किया। यह आंदोलन भारतीयों के बीच आत्मनिर्भरता और एकजुटता की भावना को बढ़ावा देने वाला साबित हुआ।
होम रूल आंदोलन (1916-1918)
बाल गंगाधर तिलक और एनी बेसेंट के नेतृत्व में होम रूल आंदोलन की शुरुआत हुई। इस आंदोलन का उद्देश्य था भारत को स्व-शासन (होम रूल) की मांग करना। इस आंदोलन ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में नई ऊर्जा भरी और भारतीयों को ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ संगठित किया।
जलियाँवाला बाग हत्याकांड (1919)
13 अप्रैल 1919 का जलियाँवाला बाग हत्याकांड भारत के स्वतंत्रता संग्राम का एक काला अध्याय है। अमृतसर के जलियाँवाला बाग में शांतिपूर्ण प्रदर्शन कर रहे निहत्थे भारतीयों पर जनरल डायर ने गोली चलाने का आदेश दिया, जिसमें सैकड़ों निर्दोष लोगों की मौत हो गई। इस घटना ने पूरे भारत में ब्रिटिश शासन के खिलाफ गुस्से और नाराजगी की लहर पैदा कर दी।
असहयोग आंदोलन (1920-1922)
महात्मा गांधी के नेतृत्व में असहयोग आंदोलन की शुरुआत हुई। गांधीजी ने भारतीयों से अपील की कि वे ब्रिटिश सरकार के साथ असहयोग करें। इस आंदोलन के दौरान भारतीयों ने ब्रिटिश स्कूलों, कॉलेजों, अदालतों और नौकरियों का बहिष्कार किया। लोगों ने ब्रिटिश वस्त्रों को जलाना शुरू किया और स्वदेशी कपड़ों का उपयोग किया।
हालाँकि, 1922 में चौरी चौरा कांड के बाद गांधीजी ने इस आंदोलन को समाप्त कर दिया, जब हिंसा फैल गई थी। लेकिन इस आंदोलन ने स्वतंत्रता संग्राम में एक नई दिशा दी और गांधीजी को एक प्रमुख नेता के रूप में स्थापित किया।
नमक सत्याग्रह और दांडी मार्च (1930)
नमक सत्याग्रह भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का एक महत्वपूर्ण चरण था। ब्रिटिश सरकार द्वारा नमक पर लगाए गए कर का विरोध करने के लिए महात्मा गांधी ने 12 मार्च 1930 को दांडी मार्च शुरू किया। उन्होंने साबरमती आश्रम से दांडी गांव तक 24 दिनों की पदयात्रा की और वहां नमक कानून तोड़ा। यह आंदोलन पूरे देश में फैल गया और लाखों भारतीयों ने ब्रिटिश कानूनों का उल्लंघन किया।
भारत छोड़ो आंदोलन (1942)
इस आंदोलन के दौरान भारतीय जनता ने बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन किया और ब्रिटिश अधिकारियों के खिलाफ विद्रोह किया। हालाँकि, इस आंदोलन को भी ब्रिटिशों ने दबा दिया, लेकिन इसने भारतीय स्वतंत्रता की नींव को और मजबूत किया।
स्वतंत्रता की दिशा में अंतिम कदम
द्वितीय विश्व युद्ध के बाद ब्रिटिश साम्राज्य की स्थिति कमजोर हो गई थी। युद्ध के दौरान भारत से लिए गए संसाधनों और सैनिकों ने भारतीयों के दिलों में ब्रिटिशों के प्रति नाराजगी को और बढ़ा दिया। 1945 में ब्रिटेन में सत्ता में आई नई सरकार ने भारत को स्वतंत्रता देने की दिशा में कदम बढ़ाए।
1946 में कैबिनेट मिशन भारत आया और उसने भारत की आजादी के लिए एक योजना प्रस्तुत की। लेकिन इस योजना पर भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस और मुस्लिम लीग के बीच सहमति नहीं बन पाई। मुस्लिम लीग ने पाकिस्तान की मांग को तेज कर दिया, जिसके कारण देश में सांप्रदायिक दंगे शुरू हो गए।
विभाजन और स्वतंत्रता
ब्रिटिश सरकार ने 1947 में लॉर्ड माउंटबेटन को भारत का आखिरी वायसराय नियुक्त किया। उन्होंने विभाजन की योजना प्रस्तुत की, जिसे भारतीय नेताओं ने अंततः स्वीकार कर लिया। 14 अगस्त 1947 को पाकिस्तान का गठन हुआ और 15 अगस्त 1947 को भारत एक स्वतंत्र राष्ट्र बन गया।
निष्कर्ष
भारत की स्वतंत्रता केवल एक दिन की घटना नहीं थी, बल्कि यह दशकों के संघर्ष, बलिदान, और नेतृत्व का परिणाम थी। भारतीय स्वतंत्रता संग्राम ने दुनिया को यह संदेश दिया कि अहिंसा और सत्याग्रह के माध्यम से भी स्वतंत्रता प्राप्त की जा सकती है। महात्मा गांधी, भगत सिंह, सुभाष चंद्र बोस, सरदार वल्लभभाई पटेल, और अन्य कई नेताओं के बलिदान और योगदान को हमेशा याद किया जाएगा।
आज हम जिस स्वतंत्र और लोकतांत्रिक भारत में रहते हैं, वह उन महान योद्धाओं की देन है, जिन्होंने अपने प्राणों की आहुति देकर हमें यह आज़ादी दिलाई। इसलिए हमें अपनी स्वतंत्रता की कीमत समझनी चाहिए और इसे बनाए रखने के लिए सतत प्रयास करने चाहिए।
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